न्यूयॉर्क में एक बैरल क्रूड आयल की कीमत एक पिज्जासे भी कम हो गयी है ।तेल की कीमतों में 12 डॉलर प्रति बैरल होने की वजह से , अधिकांश तेल कंपनियों का अस्तित्व खतरे में है ।जनवरी में तेल की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल था, जो अब कम होकर आधे से भी कम हो गया है ।
वास्तव में यह सिर्फ कोरोना और लॉकडाउन की वजह से नहीं हुआ है ।तेल उत्पादक देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता और रूस और सऊदी अरब के बीच संघर्ष के कारण दुनिया में तेल आवश्यकता से अधिक बाजार में पहुंच गया ।कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण विमानों और गाड़ियों के उपयोग शुन्य होने की वजह से सही मायने में कहा जाये तो तेल भण्डारण का कोई स्थान नहीं रह गया है ।
इसके लिए कौन जिम्मेदार है: 1. रूस, 2. सऊदी अरब, 3. अमेरिका या कोरोना वायरस।वास्तव में,कोरोना नामक महामारी के कारण होने वाले नुकसान की मात्रा का अनुमान लगाए बगैर रूस को सबक सिखाने की सऊदी की इस पहल और अन्य कारणों ने ये स्थिति उत्पन्न कर दी है ।
कीमतों में गिरावट को रोकने के लिए ओपेक के उत्पादन में कटौती के निर्णय को रूस ने अस्वीकार कर दिया , तो सऊदी ने उत्पादन बढ़ाने और मॉस्को को सबक सिखाने का फैसला किया।इस प्रतिद्वंतिता के बीच तेल नदी की तरह बहकर बाजार में पंहुचा और ठीक उसी समय कोरोना ने दुनिया में ताला लगा दिया ।तेल के उत्पादन को बंद करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा ।यदि तेल कंपनियां ड्रिलिंग बंद कर देती हैं, तो यह लंबे समय तक उत्पादन को प्रभावित करेगा।शेल ऑयल का उत्पादन करने वाला संयुक्त राज्य अमेरिका मौजूदा स्थिति का सबसे बड़ा शिकार होने जा रहा है।शेल ऑयल का उत्पादन पारंपरिक तेल कुओ की तुलना में अधिक महंगा है।अमेरिका ने पहले ही अपना उत्पादन घटाकर 30 मिलियन बैरल प्रति दिन कर दिया है।वास्तव में, तेल के इस पारंपरिक प्रभाव की गिरावट उन देशों के लिए फायदेमंद होगी जो बाजार में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे है ।कोरोना के प्रभाव से बाहर निकलने में जितना समय लगेगा उससे दुगुना समय लगेगा तेल को बाजार में अपनी पकड़ मज़बूत करने में ।