दिल्ली स्वदेशी गुरिन्दर सिंह ने 2013 में एक लेख पढ़ा की अमृतसर के एक गाँव में लड़कियाँ सैनिटरी पैड की जगह पुराने मोज़े ,राख का इस्तेमाल करती हैं। जो की भयंकर रोग का कारण बन सकती है। इस लेख ने गुरिन्दर को अंदर से झकझोर कर रख दिया और उन्होंने इस बारे में काफी खोज की। प्रकृतिदत्त और दुबारा उपयोगप्रद और साथ में आरामदायक आर्तव कप ने उनका ध्यान आकर्षित किया ,और इस तरह सिल्की कप कंपनी की नीव पड़ी। ऐमज़ॉन और फ्लिपकार्ट जैसी ऑनलाइन शॉपिंग में इन्हें बेचने के लिए रखा गया। छोटे गाँव की साधारण स्त्रियों और बच्चियों के लिए गुरिंदर ने सिल्की कप का निर्माण किया। हर महीने सैनिटरी पैड खरीदना मुश्किल होता है ,उनलोगो के लिए सिल्की कप एक वरदान है।
आर्तव समय में शारीरिक पीड़ा की तरह स्त्रियों की चिंता का कारण है पैड का विसर्जन। और साथ में ४ से ६ घंटे में इसे बदलने की चिंता ,ऐसे में १२ घंटे तक चलने वाली आर्तव कप बहुत उपयोगी सिद्ध होती है। उपयोग के बाद इसे दुबारा धो कर इस्तेमाल किया जा सकता है जो की पूरी तरह सुरक्षित है। ५ साल तक एक कप का उपयोग किया जा सकता है। थर्मो प्लास्टी एलास्टमर से बनीं ये कप क्लिनिकली परीक्षित है। हर एक नई शुरुवात की तरह सिल्की कप ने गुरगाँव की सेक्टर अग्नॉस्टिक इनक्यूबेटर हुड्ड और हेल्थ स्टार्ट एक्सेलेटर प्रोग्राम से जुड़ने के बाद सफलता प्राप्त की। कम ख़र्चे में ज्यादा चलने के वजह से सिल्की कप सब से हट कर है ,इसीलिए आज भारत में ९०,००० सिल्की कप का उपयोग किया जा रहा है। समाज के लिए वरदान बनी सिल्की कप और निर्माता गुरुन्दर सिंह सहोदा ने सब के जीवन में एक नई पहचान बना ली है।